हर्तालिका तीज 2024: शुभ मुहूर्त, महत्त्व, पूजा और विधि

हर्तालिका तीज 2024

हिंदू धर्म में तीज का विशेष महत्व है, और हर्तालिका तीज उनमें से एक है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा रखा जाता है, जो अपने पति की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। हर्तालिका तीज का व्रत हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। 2024 में हर्तालिका तीज 5 सितंबर को मनाई जाएगी।

हर्तालिका तीज 2024 का शुभ मुहूर्त

  • तृतीया तिथि प्रारंभ: 4 सितंबर, 2024 को सुबह 11:05 बजे से
  • तृतीया तिथि समाप्त: 5 सितंबर, 2024 को सुबह 12:35 बजे तक
  • पूजा का शुभ समय: 5 सितंबर, 2024 को सुबह 6:05 बजे से 8:30 बजे तक

हर्तालिका तीज का महत्त्व

हर्तालिका-तीज का व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है। यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव के मिलन की कथा पर आधारित है। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी और भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। इस व्रत को विवाहित और अविवाहित महिलाएं रखती हैं, जिसमें वे निर्जल व्रत करती हैं और पूरी श्रद्धा और भक्ति से माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं।

व्रत की पूजा विधि

हर्तालिका तीज की पूजा विधि काफी विशेष होती है और इसे पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ किया जाता है। यहाँ पर हर्तालिका तीज की पूजा विधि का विवरण दिया गया है:

  1. व्रत की तैयारी: व्रत के एक दिन पहले महिलाएं स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करती हैं और भगवान शिव, माता पार्वती, और भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर को पवित्र स्थान पर स्थापित करती हैं। व्रत के दिन निर्जल व्रत रखती हैं।
  2. मूर्ति का निर्माण: इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति मिट्टी से बनाई जाती है। इसे “शिव-पार्वती की प्रतिमा” के रूप में पूजा जाता है।
  3. पूजा सामग्री: पूजा के लिए पान के पत्ते, सुपारी, धूप, दीप, चंदन, हल्दी, कुमकुम, पुष्प, फल, मिठाई, और श्रृंगार सामग्री की आवश्यकता होती है।
  4. पूजन की विधि: सबसे पहले भगवान गणेश का पूजन किया जाता है, फिर माता पार्वती और भगवान शिव का विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। पूजा के दौरान कथा का पाठ किया जाता है जिसमें माता पार्वती की तपस्या और भगवान शिव से उनके विवाह की कथा का वर्णन होता है।
  5. आरती और प्रसाद वितरण: पूजन के बाद आरती की जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके पूजा करती हैं।

व्रत कथा:

एक कथा के अनुसार माँ पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर ही काटे और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा ही ग्रहण कर जीवन व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुःखी थे।

इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वतीजी के विवाह का प्रस्ताव लेकर माँ पार्वती के पिता के पास पहुँचे जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब बेटी पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वे बहुत दु:खी हो गईं और जोर-जोर से विलाप करने लगीं।

फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वे यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं, जबकि उनके पिता उनका विवाह श्री विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गईं और वहाँ एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गईं। माँ पार्वती के इस तपस्वनी रूप को नवरात्रि के दौरान माता शैलपुत्री के नाम से पूजा जाता है।

भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र मे माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।

मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वे अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करतीं हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बनाए रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है।

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